एक बार की बात है। एक बहुत ही बड़े साम्राज्य का राजा था। इस कारण उसकी
रानी के पास गहनें, हीरे, मोतियों और माणिक्य आदि के अम्बार लगे थे। उन सभी
गहनों में से रानी को एक नौलखा हीरों का हार बहुत प्रिय था। एक बार रानी
नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। रानी के गले में वही हीरों
का हार था, जिसे उतार कर उसने आले पर रख दिया और अपने बाल संवारने लगी।
इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़
गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की पर खा न सका। बाद
में थक-हार कर वह हीरे के उस हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर भोजन की
तलाश में फिर से उड़ गया। जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर
गया, पर वो हार तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार नहीं मिला।
रोती-धोती रानी राजा के पास पहुंची और बोली कि हार चोरी हो गया है, उसका
पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन
रानी नहीं मानी! कहने लगी, नहीं मुझे तो वहीं हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे,
पर किसी को हार नहीं मिला।
राजा ने ऐलान किया, जो भी मुझे वो हार लाकर देगा, मैं उसे आधा राज्य
पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो सभी लोग हार ढूंढने लगे। ढूंढते-ढूंढते अचानक
वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें
से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ
मारा, पर कुछ नहीं मिला। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। इस तरह उस
नाले में भीड़ लग गई। लेकिन हार किसी को नहीं मिला। कोई भी कूदता, तो वो
हार अचानक कहीं गायब हो जाता। इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न
मैं ही उस नाले में कूद जाऊं? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पड़ेगा और
देखते ही देखते राजा भी नाले में कूद गया।
इतने में उधर से एक संत गुजर रहे थे, वो ये सब देखकर हैरान हो गए और कहा! यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे है? लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गया है और नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं, वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता। संत हंसते हुए बोले, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखों, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो सिर्फ उस हार की परछाई है।
#सीख इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।
इतने में उधर से एक संत गुजर रहे थे, वो ये सब देखकर हैरान हो गए और कहा! यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे है? लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गया है और नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं, वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता। संत हंसते हुए बोले, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखों, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो सिर्फ उस हार की परछाई है।
#सीख इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।
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